क्या जगन्नाथ पुरी (Jagannath puri) मंदिर दे रहा है धरती के अंत का संकेत ? आईए समझाते है भविष्य मल्लिका के अनुसार,
भविष्य मल्लिका किताब जो 600 साल पहले ही कोरोना वायरस जैसी खतरनाक बीमारी के बाते में दुनिया को बता दिया था, 1 january 2024 में आए भूकंप के बारे में भी बता दिया था । और आगे यह भी बताती है कि बहुत तबाही भरा भूकंप आएगा जो समुद्र को पहाड़ और पहाड़ को समुद्र में बदल देगा इतना भयानक तबाही होगा।
यह किताब भविष्य के बारे में बताती है, इस किताब के हिसाब से दुनिया का अंत 2020 से ही शुरू हो गया है। यह किताब हमलोग के बीच 600 साल पहले से ही था लेकिन लोगों ने इस पर ध्यान कोविड के बाद दिया।

आज से 600 साल पहले 16 वी सदी में भारत के ओडिशा राज्य में बहुत ही ज्ञानी और महान संत थे जिनका नाम था संत अच्युतानंद दास जिनके पास ऐसी ऐसी महान सिद्धियां थी जिनसे वो भूत, वर्तमान और भविष्य सब बताते थे।
इनको पहले से ही भविष्य का सब आभास हो जाता था, इनको तंत्र, योगा, आयुर्वेद का सब पूर्ण ज्ञान था , और इन्होंने ही इस किताब को लिखा था।
इस किताब के साथ भगवान जगन्नाथ का फोटो इसलिए होती है क्योंकि ये किताब ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर से बहुत गहरा तरीके से जुड़ा हुआ है। यह किताब पीपल के पत्तो पर लिखा गया था और इस किताब के हिसाब से जगन्नाथ मंदिर ही धरती के अंत का संकेत देती है
कोविड का भविष्य मल्लिका से संकेत
600 साल पहले भविष्य मल्लिका में लिखा गया था को जगन्नाथ मंदिर के पास कल्पवत नाम का पेड़ है अगर वो किसी भी कारणवस गिर गया या टूट गया तो धरती का अंत शुरू हो जाएगा,और धरती पर बहुत ही भयानक महामारी आएगी क्योंकि माना जाता है कि उस पेड़ साक्षात् में जगन्नाथ भगवान है । और हुआ ये की 2019 के अप्रैल महीने में ओडिशा में फैनी नाम का चक्रवात आया जिससे पेड़ टूट गया। और उसके 6 महीने बाद ही कोविड महामारी दुनिया में फैल गई।
किसी भी ग्रंथ को पढ़ेंगे को आपको यही पता चलेगा कि कलयुग की उम्र 4,32,000 साल है लेकिन भविष्य मल्लिका में लिखा गया है कि लोगों के बढ़ते पाप और दुष्कर्म के चलते कलयुग की उम्र सिर्फ 5000 साल हो गई है।
कलयुग का अंत
भविष्य मल्लिका में यह साफ लिखा गया है कि कलियुग के अंत का संकेत जगन्नत पूरी (Jagannath puri) से ही मिलेगा और जैसी को इस किताब में लिखा गया है कि जब भी मंदिर के झंडे में अगर आग लगे तो समझ लेना कलयुग का अंत नजदीक है और कभी भी आग नहीं लगी थी उस झंडे में लेकिन 26 मार्च 2020 को मंदिर के झंडे में आग लग गई थी जब दीप को पास ले जाया गया था ।
दूसरा संकेत है कि मंदिर के झंडे के आस पास चिड़िया को बैठे हुए देखना। 2 , 3 साल से बहुत चिड़ियाओं को झंडे के आस पास बैठे हुए देखा जा रहा है जिसका कि साइंटिफिकली भी कारण है कि वह हवा उल्टा चलता है तो कोई भी पंछी आज तक झंडे के आस पास नहीं बैठते थे मगर अब उनको कई सालों से देखा जा रहा है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर भारत के राज्य ओडिशा के शहर पुरी में स्थित हिंदू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। देश के प्रमुख चार धाम में भी इसकी गिनती होती है। हर साल यहां भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है
पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है। यह भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है। इसे श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। यहां लक्ष्मीपति विष्णु ने तरह-तरह की लीलाएं की थीं। ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार यहांभगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए।
सबर जनजाति के देवता होने के कारण यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है। पहले कबीले के लोग अपने देवताओं की मूर्तियों को काष्ठ से बनाते थे। जगन्नाथ मंदिर में सबर जनजाति के पुजारियों के अलावा ब्राह्मण पुजारी भी हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा से आषाढ़ पूर्णिमा तक सबर जाति के दैतापति जगन्नाथजी की सारी रीतियां करते है
पुराण के अनुसार नीलगिरि में पुरुषोत्तम हरि की पूजा की जाती है। पुरुषोत्तम हरि को यहां भगवान राम का रूप माना गया है। सबसे प्राचीन मत्स्य पुराण में लिखा है कि पुरुषोत्तम क्षेत्र की देवी विमला है और यहां उनकी पूजा होती है। रामायण के उत्तराखंड के अनुसार भगवान राम ने रावण के भाई विभीषण को अपने इक्ष्वाकु वंश के कुल देवता भगवान जगन्नाथ की आराधना करने को कहा। आज भी पुरी के श्री मंदिर में विभीषण वंदापना की परंपरा कायम है।